लोगों की राय

बाल एवं युवा साहित्य >> हरा समुंदर गोपी चंदर

हरा समुंदर गोपी चंदर

अजय जनमेजय

प्रकाशक : फ्यूजन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4964
आईएसबीएन :81-288-0380-8

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

62 पाठक हैं

बच्चों के लिए उपयोगी पुस्तक...

Hara Samuder Gopi chander

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

एक दिन जब मेरे डैडी ने मुझसे कहा, ‘मनु, तुम मेरी किताब ‘हरा समुंदर गोपी चंदर’ के चित्र बनाओगी?’ तो मुझे लगा कि मैं बना भी पाऊँगी या नहीं ! फिर मैंने सोचा कि मुझे कोशिश करके देखनी चाहिए। फिर मैंने डैडी से चित्र बनाने के लिए हाँ कर दी। मेरे एक भइया हैं। उनका नाम केशव है। बहुत अच्छे चित्रकार हैं। उन्होंने मुझे चेहरे बनाने सिखाए, शेडिंग की विधि समझाई। जब मैं हर चीज बनाना अच्छी तरह से सीख गई तो मैंने सोचा कि मैं अपने डैडी की किताब के चित्र बना सकूँगी। पहले दिन मुझे डर-सा लगा। लेकिन मेरी मम्मी, डैडी व मेरे माहुल भैया ने मुझे हिम्मत दी। फिर मैं बिना घबराए चित्र बनाने लगी। मेरी मम्मी ने भी मेरी बहुत मदद की। जब मेरे से अच्छा नहीं बन पाता था तो मेरी मम्मी मुझे बताती थीं कि ये कैसे ठीक हो सकते हैं। जब मेरे सारे चित्र बन चुके तो बहुत से लोगों ने मेरे चित्र देखे और मुझसे कहा, ‘मनु, तुमने बहुत अच्छा बनाया है।’ मुझे बहुत खुशी हुई। अब मैंने सोचा लिया है कि चाहे कोई भी काम हो उसे पहले करने की कोशिश अवश्य करनी चाहिए।

आप सभी मुझे जरूर-जरूर बताइएगा कि मेरा प्रयास कैसा लगा।
मनु

समर्पित

अभी तक याद है मुझको तुम्हारी बाहों का झूला
हुआ तो हूँ बड़ा कुछ-कुछ, मगर कुछ भी नहीं भूला

डॉ. अजय जनमेजय

शुभाशंसा

बच्चों के लिए कविताएँ और गीत लिखना सरल नहीं है। ऐसी रचनाओं का सृजन, जो शिशुओं और बालकों को प्रिय लगे, सबके बूते की बात नहीं है। हाँ, जिन सहृदय रचनाकारों की, भावभूमि बालकों-जैसी निश्छल, मासूम तथा सरस रही है, वे ही रोचक बालगीत रच पाए हैं। बच्चे तो शैशव से ही गीत सुनने के प्रेमी होते हैं। माँ की गोद में वात्सल्य-भरी लोरियाँ उन्हें सदा मुग्ध करती आई हैं। उनकी घुट्टी में बालगीत जैसे रसा-पगा होता है। शैशव में उन्हें गीत के अर्थ नहीं, ताल-स्वर-लय आकृष्ट करते हैं। बढ़ती उम्र के साथ वे सार्थक गीत तथा कविताएँ पसंद करते हैं।

बालसाहित्य-जगत् में डॉ. अजय जनमेजय का नाम एवं कृतित्व एकाएक चमका है। अपनी पहली प्रकाशित कृति अक्कड़-बक्कड़ हो-हो-हो’ से ही उन्होंने सबका ध्यान आकृष्ट कर लिया। इनकी यह दूसरी कृ़ति ‘हरा समुंदर गोपी चंदर’ पूरी सज-धज के साथ पाठकों के सम्मुख है। उसके बालगीत गेय, रसीले, चोखे और चटपटे हैं। बाल पाठक इन्हें चाव से गाएँगे, गुनगुनाएँगे, और कंठ में बसाएँगे। इन रचनाओं में कवि के बालकों जैसे निश्छल और मासूम सरस भाव शब्दायित हुए हैं। इनमें लोरियाँ, शिशुगीत और बालगीत सभी हैं, जो छोटे-बड़े सभी आयु-वर्ग के बच्चों को प्रिय लगेंगे। वे उमंग और तरंग में लोकधुनों में रसी-पगी पंक्तियों के साथ थिरक उठेंगे।

इन रचनाओं की सबसे बड़ी विशेषता है कि किसी शब्द के अर्थ के लिए बाल-पाठकों को अटकना-भटकना नहीं पड़ेगा। सभी रचनाएँ अत्यंत सरल एवं बोधगम्य हैं। उनमें गति है, प्रवाह है और है सरल प्रस्तुति। पुस्तक का कलेवर आकर्षक एवं मनोहारी है। मुद्रण साफ-सुथरा एवं त्रुटिहीन है। बिटिया मनु का चित्रांकन भावानुकूल एवं संप्रेषणीय है। डॉ. अजय जनमेजय बच्चों के चिकित्सक हैं। उन्हें बाल-मनोविज्ञान की जानकारी है। इसलिए बच्चों के धरातल पर उतरकर उन्होंने सारी रचनाएँ प्रस्तुत की हैं। तब भला ये बच्चों को क्यों नहीं भाएँगी ? रचनाकार इस उपयोगी कृति के लिए बधाई के पात्र हैं। विश्वास है कि बालजगत् एवं बालसाहित्य-जगत् में ‘हरा समुंदर गोपी चंदर’ का समादर होगा।

बाल मन की कविताएँ

डॉ. अजय जनमेजय बच्चों के कुशल चिकित्सक ही नहीं, कुशल कवि भी हैं। मेरा मानना है कि बच्चों के परिवेश से जुड़ा हुआ हर व्यक्ति किसी-न-किसी रूप में बाल कल्याण के लिए समर्पित है। बाल साहित्य का मूल ध्येय भी बाल कल्याण ही है। इस दृष्टि से डॉ. जनमेजय में बाल साहित्यकार के वे सारे गुण उसी प्रकार छिपे हुए हैं, जैसे एक बीज में भारी-भरकम पौधे के सारे गुण छिपे रहते हैं।

डॉ. अजय जनमेजय के प्रथम बालकाव्य-संग्रह ‘अक्कड़-बक्कड़ हो हो हो’ का बालसाहित्य-जगत् में व्यापक स्वागत हुआ, उस पर कई पुरस्कार प्राप्त हुए। आज भी डॉ. जनमेजय बच्चों के लिए नियमित नई-नई भाव-भंगिमाओं वाली कविताएँ लिख रहे हैं।
आज जब बालसाहित्य के नाम पर ढेर सारा कूड़ा-कचरा लिखकर खपाया जा रहा है, बहुत से मठाधीश अपना वर्चस्व बालसाहित्य में भी बनाए हुए हैं, उनके तथाकथित शिष्यों का जयघोष सुनाई दे रहा है, ऐसे में बालसाहित्य की अस्मिता खतरे में पड़नी स्वाभाविक है।

ऐसी स्थिति में भी कुछ बाल साहित्यकार बड़ी निष्ठा और लगन से बालसाहित्य की मशाल जलाए हुए हैं। डॉ. अजय जमनेजय ऐसे ही बाल साहित्यकार हैं, जो अपने निश्छल स्वभाव और रचनाधर्मिता के बल पर साहित्य के मंच पर स्थापित हुए हैं।
डॉ. अजय का दूसरा बालकाव्य ‘संग्रह समुदंर गोपी चंदर’ उनके प्रथम काव्य-संग्रह का सोपान बिंदु है।
इस संग्रह की कविताओं में विविधता है। कवि का मन कहीं लोरियों में रखा है तो कहीं शिशु गीतों की निश्छलता पर रीझा है, कहीं कंप्यूटर, लैपटॉप और क्लोन की बात है तो कहीं पहेलियों के माध्यम से आत्माभिव्यक्ति का सार्थक प्रयास है।

कवि की दृष्टि से जाड़ा, गर्मी, होली, दीवाली, कुछ भी नहीं छूटा है। पारिवारिक रिश्तों और आपसी सामाजिक संबंधों पर भी कवि की पैनी नजर है। पशु-पक्षियों से भी डॉ. अजय जनमेजय को उतना ही प्यार है, जितना इंसान से। ‘बारहसिंगा’ कविता में कवि इस सुंदर प्राणी की व्यथा को बड़े सरल ढंग से व्यक्त करता है-

कुछ तो लोग खाल पर मेरी
बैठ ध्यान हैं करते।
कुछ उसमें भूसा भरवाकर
अपने घर में रखते।
सुंदर तन, सुदंर सींगों का
ये कैसा ईनाम मिला
बारह सीगों के कारण ही
बारहसिंगा नाम मिला

कवि ने पेड़-पौधों से भी अपना रिश्ता जोड़ा है। पर्यावरण संरक्षण उसका मुख्य बिंदु है। बिना पेड़ों के हम इस धरती पर सुरक्षित नहीं हैं, उन्होंने हमें अनेक सौगातें दी हैं। पेड़ों से प्रदूषण नष्ट होता है तथा हम स्वच्छ वायु प्राप्त करते हैं-

पेड़ों से ही फल पाते हम
पेड़ों से ही छाया
कैसे कैसे पात लिए हैं
खुशियों की सौगात लिए हैं
तरह-तरह के फूल-फल लिए
पेड़ों से ही स्वर्ग धरा पर
सपना सच हो पाया

हम भारतवासी हैं, जाहिर हैं हमें अपने देश से प्रेम भी होगा। डॉ. अजय जनमेजय बड़ी सफाई से कविता में सर्वधर्म-समभाव की बात करते हैं। धरती हमारी माँ है और हम सब उसके पुत्र हैं, यह भावना बच्चे-बच्चे में कूटकर भरी जानी चाहिए-
हर भेदभाव के बिना यहाँ
हों सब मानव हमको प्यारे,

सब धर्म हमारे हैं सूरज
इससे जगमग हम हैं तारे

सच्चे अर्थों में हम सारे
संतान बने भारत माँ की

प्रस्तुत संग्रह में कहीं-कहीं कवि का कथ्य अनूठा है, भाषा पर उसका अधिकार है। बाल मनोविज्ञान से जुड़े होने के नाते भावों की पकड़ में डॉ. अजय माहिर हैं-
‘बच्चों की सरकार चले/बस दुनिया में प्यार पले’ का नारा देने वाले कवि उनके मनोरंजन के लिए भी कटिबद्ध है, तभी तो उसकी ये पंक्तियाँ बच्चों को गुदगुदाती हैं-
शेर जहाँ गाजर खाए
ऊँट जहाँ गाना गाए
पेड़ लगा हो टॉफी का
सब बच्चों को ललचाए

डॉ. अजय जमनेजय की बाल-कविताओं में अनेक संभावनाएँ हैं। मुझे विश्वास है कि उनके प्रथम बालकाव्य-संग्रह की भाँति इस संग्रह का भी पाठक भरपूर स्वागत करेंगे तथा डॉ. अजय बाल पाठकों के बीच में और अधिक लोकप्रिय होंगे।
डॉ. सुरेंद्र विक्रम

माँ शारदे

शारदे माँ, शारदे माँ
ज्ञान का तू दान दे माँ

हम सभी के गम उठा लें
आँख के आसू चुरा लें
नेक हों हम, एक हों हम
ये हमें वरदान दे माँ

सर हिमालय का झुके ना
प्यार की गंगा रुके ना
विश्व सारा गुनगुनाए
भारती, जय गान दे माँ

पीर में भी धीरे हों हम
धीर हों, गंभीर हों हम
हों समर्पित देश-हित हम
बस यही तू आन दे माँ

पेड़

पेड़ हमें हरियाली देते
पेड़ हमें खुशहाली देते
पेड़ हैं धरती के उपहार
पेड़ से है जीवन-संसार
पेड़ खुशी के हैं हरकारे
पेड़ लगाएँ द्वारे-द्वारे

बूँद

बैठ गई नन्हे पत्तों पर
आसमान से आकर बूँद

हवा चली तो झूम रही है
जाने क्या-क्या गाकर बूँद

मोह रही है मन बच्चों का
इंद्रधनुष दिखलाकर बूँद

थककर आकर लेट गई है
कोमल घास बिछाकर बूँद

बिछुड़ी बादल से, पर खुश है
सबकी प्यास बुझाकर बूँद

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai